धर्म जोड़ता है तोड़ता नहीं।
धर्म और अधर्म
धर्म और अधर्म हम संक्षिप्त में समझेंगे
धर्म और अधर्म विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धर्म सामाजिक और आध्यात्मिक आदर्शों का पालन करने को प्रेरित करता है। जबकि अधर्म उन आदर्शों के विरुद्ध होता है। इन अवधारणाओं में धर्म सामाजिक समृद्धि और समरसता का साधन करने का प्रयास करता है, जबकि अधर्म विघ्न डालता है।
अब हम यह समझेंगे कि किस प्रकार धर्म जोड़ता है तोड़ता नहीं है
धर्म एक ऐसा आदान-प्रदान है जो समाज को एक सजीव और मिलनसर समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करता है। धर्म ने सदियों से मानवता को संबोधित किया है और सामाजिक आदान-प्रदान को स्थापित करने में मदद की है। यह तोड़ने की बजाय जोड़ने का सिद्धांत अपनाता है।
धर्म समाज को एकीकृत बनाए रखने का कारगर और सहारा होता है। यह लोगों को नेतृत्व, सजीव सामरिकता, और समाजसेवा की दिशा में प्रेरित करता है। धर्म का पालन करने से व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है और समाज के साथ सजीव संबंध बनाए रखता है।
धर्म का सिद्धांत है कि सभी मानव समाज में बराबरी, न्याय, और सहानुभूति के साथ जीवन यापन करें। यह व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है और उसे अपने कर्तव्यों के प्रति सजग बनाए रखता है। इस प्रकार, धर्म समाज में एक आदर्श स्थिति को प्राप्त करने में सहारा प्रदान करता है।
धर्म का अनुसरण करके समाज में सद्गुण, ईमानदारी, और समर्पण की भावना बनी रहती है, जिससे सामाजिक समृद्धि होती है और लोग एक दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहते हैं। इस प्रकार, धर्म समृद्धि और एकता की ओर मार्गदर्शन करता है, तोड़ता नहीं बल्कि जोड़ता है।
धन्यवाद
पी के विश्वकर्मा देवरिया।
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